म्यांमार में नई नहीं है तख्तापलट की तस्वीर, देश में सैन्य शासन का लंबा रहा है इतिहास

नेपीता. म्यांमार में सोमवार को सेना ने तख्तापलट कर देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली है. स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची की पार्टी ने कहा है कि उन्हें नजरबंद कर लिया गया है. म्यांमा में सैन्य शासन का लंबा इतिहास रहा है और भारत के इस पड़ोसी देश का प्रमुख घटनाक्रम इस प्रकार है.
चार जनवरी 1948 : उस समय बर्मा के नाम से जाने जाने वाले म्यांमार को ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई.
1962 : सैन्य नेता ने विन ने तख्तापलट कर कई साल तक जुंटा (सैन्य शासन) के जरिये देश पर शासन किया.
1988 : देश में जुंटा के खिलाफ शुरू हुए लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के बीच, स्वतंत्रता के नायक रहे आंग सान की बेटी आंग सान सू ची स्वदेश वापस लौटीं. अगस्त में सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की. सैंकड़ों लोगों की मौत हुई.
जुलाई 1989 : जुंटा की खुलकर आचोलना करने वाली सू ची को नजरबंद किया गया.
27 मई 1990 : सू ची के स्थापित की गई ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ को चुनावों में जबदस्त जीत हासिल हुई, लेकिन सेना ने सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया.
अक्टूबर 1991 : सू ची को शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिये नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सात नवंबर 2010 : 20 साल बाद पहली बार हुए चुनाव में सेना के समर्थन वाली पार्टी को जीत मिली. चुनाव में धांधली के आरोप लगाते हुए नतीजों का बहिष्कार किया गया.
13 नवंबर 2010 : दो दशक की लंबी अवधि तक नजरबंद रखने के बाद सू ची को हिरासत से रिहा किया गया.
2012 : सू ची उपचुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंची. पहली बार किसी सार्वजनिक पद पर काबिज हुईं.
आठ नवंबर 2015 : 1990 के बाद पहली बार स्वतंत्र रूप से हुए आम चुनाव में सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली. सेना ने संविधान के तहत प्रमुख शक्तियां अपने पास रखीं, जिसमें सू ची को राष्ट्रपति पद से दूर रखना शामिल है. सरकार के नेतृत्व के लिये स्टेट काउंसलर का पद सृजित किया गया और सू ची को इस पर काबिज हुईं.
25 अगस्त 2017 : पश्चिमी रखाइन राज्य में सैन्य चौकियों पर चरमपंथी हमले हुए, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए. सेना ने रोहिंग्या मुसलमान आबादी के खिलाफ भीषण कार्रवाई करते हुए पटलवार किया, जो हजारों लाखों की संख्या में बांग्लादेश भाग गए.
11 दिसंबर 2019 : सू ची ने हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में एक मामले में सेना का बचाव करते हुए नरसंहार की बात से इनकार किया.
आठ नवंबर 2020 : म्यांमार में हुए संसदीय चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को स्पष्ट बहुमत मिला.
29 जनवरी 2021 : म्यांमार के चुनाव आयोग ने चुनाव में धांधली के सेना के आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं पाने के बाद आरोप खारिज कर दिए.
एक फरवरी 2021 : म्यांमार की सेना ने एक साल के लिये देश को अपने नियंत्रण में ले लिया. सेना ने कहा कि सरकार चुनाव में धोखाखड़ी के उसके आरोपों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है और उसने कोरोना वायरस के चलते नवंबर में चुनाव टालने के सेना के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. सूची की पार्टी ने कहा कि उन्हें नजरबंद कर दिया गया है.